लेखक का परिचय
लेखक | हरिशंकर परशाई |
जन्म | २२ अगस्त १९२४ |
मृत्यु | १० अगस्त १९९५ |
बस की यात्रा पाठ प्रवेश
वे इस लेख के द्वारा, अपने व्यक्तिगत अनुभव का बखान करते हैं जोकि है ‘‘बस की यात्रा।” वे एक बार बस के द्वारा अपनी यात्रा करते हैं और किस तरह की परेशानियाँ इस यात्रा में आती हैं, इस सब का अनुभव इस रचना के द्वारा दर्षाया गया है।
एक बार बस से पन्ना को जा रहे थे बस बहुत ही पुरानी थी जैसा कि दर्शाया गया है इस सफर में क्या-क्या अनुभाव किया, क्या-क्या उनके साथ घटा, और उन्होंने परिवहन निगम की जो बसें होती हैं उनकी घसता हलात पर व्यंग किया है और ये भी दर्शाया गया है कि किस तरह से वे अपनी बसों की देख-भाल नहीं करते हैं और एक घसियत पद की तरह से इस रचना को लिखा है जब हम इसको पढ़ते हैं तो बहुत सी घटानाऐं हास्यपद (हँसीपद) लगती हैं और बहुत ही रोंचक हो गई है उनकी यह रचना। तो आइए हम भी चलते हैं उनकी इस यात्रा पर।
बस की यात्रा पाठ सार
एक बार लेखक अपने चार मित्रों के साथ बस से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते हैं। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने की सलाह देते हैं। उनकी सलाह न मानते हुए, वे उसी बस से जाते हैं किन्तु बस की हालत देखकर लेखक हंसी में कहते हैं कि बस पूजा के योग्य है।
नाजुक हालत देखकर लेखक की आँखों में बस के प्रति श्रद्धा के भाव आ जाते हैं। इंजन के स्टार्ट होते ही ऐसा लगता है की पूरी बस ही इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय की है क्योंकि बस के सारे पुर्जे एक-दूसरे को असहयोग कर रहे थे।
कुछ समय की यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है। आत्मग्लानि से मनभर उठता है और विचार आता है कि क्यों इस वृद्धा पर सवार हो गए।
इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते हैं।
बस की यात्रा पाठ की व्याख्या
पाठ – हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती है। सुबह घर पहुँच जाएँगे।
व्याख्या – लेखक ने वर्णन किया कि वेपाँच मित्र थे।उन्होंने एक कार्यक्रम बनाया कि शाम चार बजे की बस से चलेंगे। ये जो चार बजे की बस है यही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचने में मदद करेगी। पन्ना (पन्ना जगह का नाम) से ये बस चलने वाली थी । करीबन एक घंटे बाद पन्ना से सतना के लिए उन्हें बस मिलनी थी । लेखक और उनके मित्रों को जबलपुर जाना है इसलिए कुछ यात्रा वो बस से करेंगे उसके बाद जबलपुर के लिए ट्रेन पकडेंगे। यात्रा में पूरी रात का समय लगेगा और वह सुबह के समय तक घर पहुँच जाएँगे।
पाठ – हम में से दो को सुबह काम पर हाज़िर होना था इसीलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना ज़रूरी था। लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते। क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं, बस डाकिन है।
शब्दार्थ –
हाज़िर: उपस्थित
सफ़र: यात्रा
डाकिन: डराने वाली
व्याख्या – लेखक के साथ जो दो मित्र गए थे उन्हें दफ्तर में समय पर उपस्थित होना था। इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था। उनके जो जानकर लोग थे उन्होंने उन्हें सलाह दी कि अगर कोई समझदार व्यक्ति होगा तो इस शाम को चलने वाली बस से यात्रा करना पसंद नहीं करेगा, क्योंकि शाम के थोड़ी देर बाद काफी अँधेरा हो जाता है और रात के समय में यात्रा करना सुरक्षित नहीं रहता। “क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं?” एक प्रष्न किया है लेखक ने। रास्ते में डाकू-वगैरा तो नहीं मिलते लेकिन जो बस की हालत है वो बहुत ही डरावनी है। बस खराब हालत में है, पता नहीं मंजिल पर पहुँचा पाएँगी की नहीं तो लोग हमेशा उस बस से जाने से डरते है।
पाठ – बस को देखा तो श्रद्धा उमड पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है!
शब्दार्थ –
श्रद्धा: किसी के प्रति आदरए सम्मान और प्यार का भावद्ध
उमड़: जमा होना
वयोवृद्ध: बूढ़ी या पुरानी
निशान: चिन्ह
वृद्धावस्था: बुढ़ापा
कष्ट: परेशानी
सवार: चढ़ा
व्याख्या – जिस बस से लेखक को जाना था वह बस बहुत पुरानी थी वह बहुत सालों से चल रही थी लोग उसके द्वारा अपनी अनेक यात्राएँ पूरी कर चुके थे। इस बस को देखने से यह अनुभाव हो रहा था कि इस बस ने बहुत सारी यात्राएँ की हैं, बहुत सारे लोगों को उनकी मंजिल पर पहुँचाया है। उसके निशान इस बस पर साफ दिखाई दे रहे थे। उसके शीशे, खिड़कियाँ, और पूरी बॉडी टूट चुकी थी। कोई भी चीज़ सही ठिकाने पर नहीं थी, घसता हालत हो चुकी थी उसका इंजन आवाज़ कर रहा था। तो इसलिए लोग यात्रा नहीं करना चाहते थे क्योंकि बस बहुत पुरानी हो चुकी थी । उस बस को कुछ परेशानी हो सकती है क्योंकि वह बहुत पुरानी हो चुकी है वृद्ध हो चुकी है। यह बस पूजा के योग्य थी। क्योंकि इसमें बहुत सारे लोगों को अपनी मंजिल पर पहुँचाया था, बहुत ज्यादा सफर तय किया था इसलिए यह बस पूजा के योग्यनीय थी। एक बूढ़ी और पुरानी बस के ऊपर सवार होने का कैसे सोचा जा सकता है जबकि यह तो उसके आराम करने का समय है।
पाठ – बस-कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे। हमने उनसे पूछा- “यह बस चलती भी है?” वह बोले- “चलती क्यों नहीं है जी! अभी चलेगी।” हमने कहा- “वही तो हम देखना चाहते हैं। अपने आप चलती है यह? हाँ जी, और कैसे चलेगी?”
गज़ब हो गया। ऐसी बंस अपने आप चलती है।
शब्दार्थ –
हिस्सेदार: साझेदार
गज़ब: आश्चर्य
व्याख्या – जिस बस से लेखक अपनी यात्रा कर रहे थे, और ये जिस कंपनी की बस थी उसके जो हिस्सेदार थे, वो भी इसमें यात्रा कर रहे थे। लेखक ने उससे प्रश्न किया कि क्या यह बस चलती भी है? उन्होंने उत्तर दिया कि चलती क्यों नहीं है जी! अभी चलेगी।वह उसके मालिक थे और उन्हें उस पर पूरा भरोसा था। लेखक औ उनके मित्रोंने कहा- ‘‘वही तो हम देखना चाहते हैं कि यह कैसे चलेगी। अपने आप चलती है क्या यह?” हिस्सेदार ने लेखक की बात पर आर्श्चय जताया और लेखक ने उनकी बात पर आर्श्चय जताया क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी पुरानी बस भी चलती है। इसीलिए वह पुनः कहते हैं ऐसी बस अपने आप चलती है ये तो कमाल हो गया।
पाठ – हम आगा-पीछा करने लगे।
डॉक्टर मित्र ने कहा-“डरो मत, चलो! बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।”
शब्दार्थ –
विश्वसनीय (भरोसे वाली)
व्याख्या – लेखक और उनके मित्रों के मन में विचार थाकि जाएँ या न जाएँ। उनमें से एक डॉक्टर मित्र भी था ।उन्होंने भरोसा और बढ़या, विश्वास जताया कि डरने की कोई बात नहीं हैं, चलते है। बसने बहुत सारे लोगों अपनी मंजिल पर पहुँचाया है। उसने कभी किसी को धोका नहीं दिया। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है।जो नयी-नवेली बसें है उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता लेकिन इस बस पर विश्वास किया जा सकता है। यह आपको अपनी मंजिल पर अवश्य पहुँचाएगी । जैसे माँ अपने बेटे को गोद में उठाकर चलती है ये बस भी वैसे ही हम सब को अपने बच्चों की तरह लेकर चलेगी इस सफर पर, और मंजिल पर पहुँचाएगी।
पाठ – हम बैठ गए। जो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदा दे रहे हैं। उनकी आँखें कह रही थीं- “आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा-राजा, रकं, फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।”
शब्दार्थ –
विदा: आखिरी सलाम
रकं: गरीब
कूच करने: जाना
निमित्त: कारण
व्याख्या – जो मित्र उन्हें छोड़ने आए थे वे इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदा दे रहे हो अंतिम विदा कर रहे हों। उन्हें भी शक हो रहा था इसीलिए वह ऐसी नजरों से देख रहे थे कि जैसे कि पता नहीं फिर मिलेंगे की नहीं। उनकी आँखें कह रही थी कि इस जिन्दगी में लोगों का आना-जाना तो लगा ही रहता है लोग पैदा होते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते है । आदमी के इस दुनिया से जाने का कोई न कोई एक निमित कारण बनता है।
पाठ – इंजन सचमुच स्टार्ट हो गया। ऐसा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इजंन के भीतर बैठे हैं। काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था। हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए। इंजन चल रहा था। हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है।
शब्दार्थ –
फौरन: तुरंत
सरक: खिसक
व्याख्या – ड्रॉइवर ने इंजन को स्टार्ट किया और बस शुरू हो गई। जब वे बस में जाकर बैठे तो ऐसा महसूस हुआ कि जैसे वेइंजन पर ही बैठे हो क्योंकि पूरी बस में इंजन की ही आवाज़ गूँज रही थी। बस की खिड़ाकियाँ थी उस पर बहुत ही कम काँच लगे थे और हवा भी पूरे जोरों से आ रही थी और जो काँचे बचे थे वह टुटे-फूटे थे, बुरी हलात में थे, यात्रियों को चोट लग सकती थी। वेतुरंत खिड़की से दूर खिसक गए क्योंकि लेखक डर रहे थे कहीं उन्हें कोई चोट न पहुँचाए इसलिए वह खिड़की के पास नहीं बैठे । इंजन चल रहा था। बस स्टार्ट थी। ऐसा महसूस हो रहा था कि जहाँ वे बैठे हैं उस सीट के नीचे ही इंजन लगा है और घरर्-घरर् की आवाज़ कर रहा है। जोकि बहुत ही खतरनाक महसूस हो रहा था।
पाठ – बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गांधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयेग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी।
शब्दार्थ –
सविनय अवज्ञा आंदोलनों: गाँधी जी द्वारा चलाया गया 1921 का आंदोलन
ट्रेनिग: सीख
दौर: ज़माने
गुजर: चल
व्याख्या – बस इतनी पुरानी थी की लेखक और उनके मित्रों को लगा कि वह भारत की आज़ादी के समय हुए असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय की होगी।जिस तरह से गाँधी जी के समय में असहयोग आंदोलन चलया गया था इस तरह ही इस बस का हर हिस्सा पूरी तरह से सहयोग नहीं कर रहा था अर्थात् एक दूसरे का साथ नहीं दे रहा था । बस बहुत पुरानी है, बहुत पुराने जमाने से यह चलती आ रही है इस कारण इसकी हालत इतनी खराब हो गई है कि अब लेखक इससे यात्रा करने से डर रहे हैं क्योंकि इसके इंजन आवाज़ कर रहे हैं खिड़की टूटी हुई हैं और एक एक पुरज़ा हिल रहा है।
पाठ – सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।
शब्दार्थ –
असहयोग: साथ न देना
भेदभाव: अंतर
व्याख्या – बस की सीट थी और जो उसकी बॉडी आपस में साथ नहीं दे रहे थे, असहयोग कर रहे थे, यानी सारी बस हिल रही थी। कभी लगता कि सीट अपनी जगह पर नहीं थी वह भी हिल रही थी तो ऐसा महसूस हो रहा था, कि सीट बॉडी को छोड़कर खिसक गई है आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। कभी ऐसा भी लगता आठ-दस मील चलने पर सारे अंतर मिट गए। लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि हम बस की सीट पर बैठे हैं या सीट हमारे ऊपर सवार हो गई है।
पाठ – एकाएक बस रुक गई। मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकालकर उसे बगल में रखा और नली डालकर इजंन में भेजने लगा।
व्याख्या – अचानक बस में कुछ खराबी आ गई और वह रूक गई । बस की पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया था और पेट्रोल बहने लगा था । ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकालकर उसे बगल में रखा और नली अर्थात् एक पाईप के द्वारा इंजन में भेजने लगा।
पाठ – अब मैं उम्मीद कर रहा था कि थोडी़ देर बाद बस-कंपनी के हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे, जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है।
शब्दार्थ –
उम्मीद: आस
व्याख्या – लेखक आस लगाऐ बैठे थे कि थोड़ी देर बाद बस-कंपनी के जो हिस्सेदार थे इंजन को निकाल कर गोद में रख लेगें। ऐसा लेखक को लगने लगा था क्योंकि जो कंपनी की बस थी उसके जो हिस्सेदार थे वह भी इसी बस से यात्रा कर रहे थे और अब तो यही सोचा जा सकता था कि अब धीरे-धीरे इस बस के इंजन को भी निकालकर जो हिस्सेदार है वह अपनी गोदी में रख लेगें। और उसे नली से पेट्रोल पिलाऐंगे। जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है।
पाठ – बस की रफ़्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है।
शब्दार्थ –
रफ़्तार: गति
भरोसा: विश्वास
व्याख्या – बस की गति अब पंद्रह-बीस मिल हो गई थी अर्थात् रफ्तार बहुत धीमी हो गई थी। लेखक को उसपर बिलकुल भरोसा नहीं था क्योंकि उसकी हालत ही एसी थी और अब तो उसके पेट्रोल के टंकी में छेद हो गया था, अब उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। कभी भी कुछ भी हो सकता था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। कुछ भी हो सकता था। मन में ख्याल आ रहे थे जैसा उनके मन में भय था और जैसा उन्हें संदेह था कि यह बस शायद ही हमारे इस यात्रा को सफल करे और जैसा उन्होंने सोचा था और जैसा उनके मन में डर था, वैसा वैसा ही घट रहा था।
पाठ – प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ़ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।
शब्दार्थ –
लुभावने: सुन्दर
गोता: डुबकी
व्याख्या – जो दृश्य सामने आ रहा था जंगलों का, आस-पास घने पेड़ों का, नदी तालबों का, बहुत ही सुन्दर दिख रहा था। जब उसकी खिड़की से वे देख रहे थे तो ये दृश्य बहुत ही अच्छे लग रहे थे। दोनों तरह हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे और चहचहा रहे थे। जैसा कि बस कि हलात खसता थी लेखक डरा हुआ था वह जब भी कोई पेड़ आता सड़क के किनारे, तो वह उसे दुश्मन जैसा नज़र आता। क्योंकि ऐसा लगता कि शायद बस पेड़ से टकरा सकती है। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकरा जाऐगी। वह निकल जाता तो जान में जान आ आती। और दूसरे पेड़ का इंतजार करने लगता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी। गोता लगा जाएगी अर्थात् डुबकी लगा जाएगी।
पाठ – एकाएक फिर बस रुकी। ड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीबें कीं पर वह चली नहीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया था, कंपनी के हिस्सेदार कह रहे थे- “बस तो फर्स्ट क्लास है जी! यह तो इत्तफ़ाक की बात है।”
शब्दार्थ –
इत्तफ़ाक: संयोग
व्याख्या – एक बार फिर से बस रूकी। फिर कुछ न कुछ खराबी हुई। ड्राइवर ने बहुत ही कोशिश की पर वह चली नहीं। बस ने अपना विरोध जतना शुरू कर दिया था। कंपनी के हिस्सेदार कह रहे थे- ‘‘बस तो फर्स्ट क्लास है जी! यह तो एक इत्तफाक की बात है।” इत्तफाक का अर्थ है संयोग की बात है। ऐसा वैसा कभी इसके साथ कभी हुआ नहीं है यह तो आज ही पहली बार ऐसा संयोग हुआ है ऐसा समय हो गया है कि यह बस के साथ कुछ खराबी आ रही है। वरना परेषान होने की जरूरत नहीं है। कंपनी के हिस्सेदार ने भरोसा दिलाते हुए कहा बस बहुत ही फर्स्ट क्लास है अर्थात् बहुत अच्छी हालत में है। यह डरने की बात नहीं है ऐसा कभी-कभी हो जाता है।
पाठ – क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता, जैसे कोई वृद्धा थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बैचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।
शब्दार्थ –
क्षीण: कमज़ोर
वृक्षों: पेड़
दयनीय: बेचारी
वृद्धा: बूढी
ग्लानि: खेद
प्राणांत: मरना
बियाबान: सुनसान
अंत्येष्टि: अंतिम क्रिया
व्याख्या – जैसा कि रात हो गई थी चाँदनी रात थी तो क्षीण चाँदनी में पेड़ों की छाया के नीचे वह बस बड़ी बेचारी लग रही थी। बस जैसा कि रूक चुकी थी, अँधेरा हो चुका था और चाँद की चाँदनी में पेड़ों की छाया के नीचे वह बस खड़ी थी और बहुत ही बेचारी सी लग रही थी क्योंकि उसकी हालत बहुत दयनीय थी। लगता, है जैसे कोई बुढ़ी औरत थक कर बैठ गई हो। बस इस तरह से रूक कर खड़ी हो गई थी। जैसे कोई बूढ़ी औरत थक कर बैठ जाती है। उन्हें अपने आप पर खेद हो रहा था कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्रणांत हो गया तो यह पूरी तरह से बेकार हो गई तो इस सुनसान जंगल में हमें इसकी अंतिम क्रिया करनी पडे़गी। हमें इसका यहीं पर त्याग करना होगा और अपना सफर कैसे पूरा करेंगे इस सब की परेशानी लेखक के मन में चल रही थी।
पाठ – हिस्सेदार साहब ने इंजन खोला और कुछ सुधारा। बस आगे चली। उसकी चाल और कम हो गई थी।
व्याख्या – कंपनी के हिस्सेदार जो इस बस से यात्रा कर रहे थे अब वह अपनी मदद करने लगे थे उन्होंने इंजन को खोला और कुछ सुधारा। बस आगे चली। इसके पश्चात् बस आगे बढ़ी उसकी चाल और भी कम हो गई थी। ऐसे लग रहा था जैसे कि पैदल यात्रा कर रहे हैं।
पाठ – धीरे-धीरे वृद्धा की आँखां की ज्योति जाने लगी। चाँदनी में रास्ता टटोल कर वह रेंग रही थी। आगे या पीछे से कोई गाड़ी आती दिखती तो वह एकदम किनारे खड़ी हो जाती और कहती-“निकल जाओ, बेटी! अपनी तो वह उम्र ही नहीं रही
शब्दार्थ –
ज्योति: रोशनी
टटोलकर: ढूंढकर
रेंग: धीरे-धीरे
व्याख्या – बस की हैड-लाईट की रौशनी अब कम होने लगी। वृद्धा बस को कह रहे हैं और आँखें हैड-लाईट को। चाँदनी रात में रास्ता ढूंढकर वह धीरे-धीरे चल रही थी। अँधेरी रात में उसकी हैड-लाईट कमज़ोर हो गई थी, रौशनी कम थी इसलिए चाँदनी का सहारा लेकर ड्राइवर उसे धीरे-धीरे चला रहा था। आगे या पीछे से कोई गाड़ी आती दिखती तो वह एकदम किनारे पर खड़ी हो जाती और बस का ड्राइवर साथ से गुजरने वाली गाड़ीयों को कह रहा था कि बगल से निकल जाओ। वह जो गड़ियाँ गुजर रही थी वह नई नवेली थी, जवान थी इसलिए वह उसे बेटी कहता है। लेखक बस की तरफ से कहते हैं कि उसकी तो उम्र हो गई है, तुम जवान हो तुम निकल जाओ। मैं तो धीरे-धीरे ही आऊँगी।
पाठ – एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफ़र कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है।
शब्दार्थ –
एक पुलिया: छोटा सा पुल
फिस्स: एक प्रकार की ध्वनि
थम: रूक
श्रद्धाभाव: सम्मान के साथ
जान हथेली पर लेकर: बहुत खतरा लेना
उत्सर्ग: बलिदान
दुर्लभ: जो कम मिलता हो
व्याख्या – बस एक छोटे से पुल के ऊपर पहुँची ही थी कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। टायर से एक प्रकार की ध्वनि निकली तो सब समझ गए की टायर पेन्चर हो गया है और सफर वहीं पर रूक गया। बस की गति बहुत कम थी इसलिए शायद किसी को परेशानी नहीं हुई, कोई घायल नहीं हुआ। अगर स्पीड ज्यादा होती बगल में ही एक बहुत गहरा नाला बह रहा था, बस उसमें गिर सकती थी। लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की तरफ सम्मान के साथ देखा और सोचा कि वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी खतरा मोल ले रहे हैं। वह अपनी जान हथेली पर लेकर इस बस से सफर कर रहे हैं, ये तो हद ही हो गई। मालिक भी ऐसी खसता बस में सफर करके मरने के लिए तैयार है यह तो हैरानी की बात है। लेखक उसके बारे में कुछ श्रद्धाभाव से उसकी ओर देखते है और ऐसा सोचते हैं।
पाठ – सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए।
व्याख्या – अब लेखक हिस्सेदार के बारे में सोच रहे हैं कि ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो ऐसी खसता हालत में भी बस चलाते है और खुद भी उसमें सफर करते है । वे सोचते हैं कि इसे तो कंपनी का मालिक नहीं बल्कि क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए थाक्योंकि ऐसे व्यक्तियों को जिन्हें अपना आत्म बलिदान देने का सहस हो, कहीं का नेता होना चाहिए ताकि वह किसी अच्छे आंदोलन का नेतृत्व कर सके।
पाठ – अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम सब मर जाते तो देवता बाँहें पसारे उसका इंतजार करते। कहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।”
शब्दार्थ –
पसारे: फैलाए
प्राण: जान
व्याख्या – लेखक अब तरह तरह के भय घिरेसे हुए है सोचते हैं कि अगर वे सब मर जाते तो देवता बाँहें फैलाए उनका इंतजार करते। लेखक उसके बारे में सोचते हैं और कहते हैं कि अगर यह बस यात्रा करते हुए मर गया या फिर सब मर जाते तो ईश्वर हमारें लिए ही बाँहें पसारे बैठे हमारा इंतजार करते। ईश्वर कहते कि कितना महान आदमी है एक टायर बदलने की बजाए अपने प्राण दे दिए, यह बहादुरी का काम है।
पाठ – दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली। अब हमने वक्त पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। पन्ना कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। पन्ना क्या, कहीं भी, कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी।
शब्दार्थ –
वक्त: समय
उम्मीद: आशा
व्याख्या – कंडक्टर साहब ने अपना सहयोग दिया और टायर बदला फिर बस चल पड़ी। लेखक को जरा सा भी विष्वास नहीं था कि वे अपनी मंजिल पर पहुँच पाँऐंगे उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी।
पाठ – लगता था, जिंदगी इसी बस में गुजारनी है अैर इससे सीधे उस लोक को प्रयाण कर जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। हमारी बेताबी, तनाव खत्म हो गए। हम बड़े इत्मीनान से घर की तरह बैठ गए। चिंता जाती रही। हँसी-मजाक चालू हो गया।
शब्दार्थ –
लोक: मृत्यु लोक
प्रयाण: प्रस्थान
बेताबी: बेचैनी
तनाव: चिंता
व्याख्या – ऐसा लग रहा था कि पूरी जिन्दगी इस बस में ही गुजारनी पडे़गी और इससे मृत्यु लोक को प्रस्थान कर चले जाना होगा। सारी जिन्दगी इसी बस में गुजार जानी है प्राण भी शायद इसी बस के द्वारा ही निकल जाए ऐसा संभव था। अब लेखक को ऐसा लगने लगा था कि इस धरती पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। आखिरी मंजिल यह बस थी पता नहीं ये कहाँ लेजाएगी। बेचैनी, मन में तरह तरह के ख्याल, तरह-तरह की चिंताऐ अब खत्म हो गई। अब भरोसा ही नहीं था, बसने तो मंजिल तक पहुँचना ही नहीं है अतः शोर मचाने से कुछ नहीं होगा। अराम से इत्मीमान से बैठ गए। जितने भी यात्री थे सब आपस में हँसी-मजाक करने लगे। और लेखक के जो मित्र थे वह भी अब अपना समय हँसी-मजाक के द्वारा व्यतित करने लगे।
बस की यात्रा प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )
प्र॰1 “मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ़ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।” लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?
उत्तर- लेखक के मन में हिस्सेदार के प्रति श्रद्धाभाव इसलिए जगी क्योंकि वह थोड़े से पैसे बचाने के चक्कर में बस का टायर नहीं बदलवा रहा था और अपने साथ-साथ यात्रियों की जान भी जोखिम में डाल रहा था इसलिए लेखक ने श्रद्धाभाव कहकर उसपर व्यंग किया है।
प्र॰2 “लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।” लोगों ने यह सलाह क्यों दी?
उत्तर- लोगों ने लेखक को शाम वाली बस में सफर न करने की सलाह उसकी जीर्ण-शीर्ण हालत को देखकर दी। यदि रात में वह कहीं खराब हो गई तो परेशानी होगी। लोगो ने इस बस को डाकिन भी कहा।
प्र॰3 “ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।” लेखक को ऐसा क्यों लगा?
उत्तर- सारी बस लेखक को इंजन इसलिए लगी क्योंकि पूरी बस में इंजन की आवाज़ गूंज रही थी।
प्र॰4 “गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।” लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?
उत्तर- लेखक को इस बात पर हैरानी हुई की इतनी टूटी-फूटी बस कैसे चल सकती है। वे यह मानते हैं कि इस बस को कौन चला सकता है। यह तो स्वयं ही चल सकती है।
प्र॰5 “मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।” लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर- लेखक को बहुत डर लग रहा था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि बस अभी किसी पेड़ से टकरा जाएगी और वो लोग जख्मी हो जायेंगे। इसलिए वे पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहे थे।
Also see :
- Chapter 1 लाख की चूड़ियाँ कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर, कठिन शब्द
- Chapter 2 बस की यात्रा कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
- Chapter 3 दीवानों की हस्ती कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
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- Chapter 6 यह सबसे कठिन समय नहीं कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
- Chapter 7 कबीर की साखियाँ कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
- Chapter 8 सुदामा चरित कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
- Chapter 9 जहाँ पहिया है कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
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- Chapter 11 सूरदास के पद कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
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- Chapter 13 बाज और साँप कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर
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