लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली। लेखक कहता है कि गांधीजी के सामने ज़ुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर इकट्ठे आते रहते थे। महादेव उनकी बातों को विस्तार से सुनकर छोटे रूप में तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आने वालों के साथ गांधीजी की आमने-सामने मुलाकातें भी करवाते थे।
लेखक कहता है कि शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे। इनमें अंतिम जमनादास द्वारकादास श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इंडिया’ नाम का एक अंग्रेज़ी पत्रिका भी निकालते थे। ये पत्रिका सप्ताह में एक बार निकाली जाती थी।
शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई के बेजोड़ नेता भी थे। जो पूरे आंदोलन के दौरान गांधीजी के साथ ही रहे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।
लेखक कहता है कि गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। लेखक कहता है कि गांधीजी और महादेव का सारा समय देश घूमने में बीतने लगा। गांधीजी और महादेव जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते थे। लेखक कहता है कि, भरपूर चैकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होने वाली विनय-विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की शिक्षा इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से महादेव को सबका लाड़ला बना दिया था।
क्योंकि महादेव ने सभी कामों को बड़े सही ढंग से सम्भाल रखा था।
लेखक कहता है कि भारत में महदेव के अक्षरों का कोई सानी नहीं था, कोई भी महादेव की तरह सुन्दर लिखावट में नहीं लिख सकता था। यहाँ तक कि वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
भले ही उन दिनों भारत पर ब्रिटिश सल्तनत की पूरी हुक़ूमत थी, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गाँधीजी के सेक्रेटरी यानि महादेव के समान सुन्दर अक्षर लिखने वाला लेखक कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। लेखक कहता है कि महादेव का शुद्ध और सुंदर लेखन पढ़ने वाले को मंत्र मुग्ध कर देता था।
लेखक कहता है कि महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लम्बी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मंज़िल पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गाँधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-ख़ामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में कोई भी गलती नहीं होती थी यहाँ तक कि कॉमा मात्र की भी भूल नहीं मिलती थी।
लेखक कहता है कि गाँधीजी हमेशा मुलाकात के लिए आए हुए लोगों से कहते थे कि उन्हें अपना लेख तैयार करने से पहले महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था, इतना सुनते ही लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते थे। लेखक कहता है कि जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले कीचड़ के बने हैं।
यदि कोई इन मैदानों के किनारे सौ-सौ कोस भी चल लेगा तो भी रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं नहीं मिलेगा। इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी नहीं चुभती थी, यह उनके कोमल स्वभाव का ही परिणाम था। लेखक कहता है कि उनका यह स्वच्छ स्वभाव उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को चन्द्रमा और शुक्र की चमक की तरह मानो दूध से नहला देती थी।
लेखक कहता है कि उनके स्वाभाव में डूबने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक नहीं उतरता था। महादेव का पूरा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ इस तरह से मिल गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। लेखक कहता है कि सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर सेगाँव की सरहद पर लगे एक पेड़ के नीचे जा बैठे।
उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, जब तक यह काम हो रहा था तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चि. नारायण के साथ मगनवाड़ी में ही रहे। वहीं से वे वर्धा की सहन न की जाने वाली गर्मी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे।
लेखक कहता है कि वे लोग हर रोज़ जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़का यह क्रम लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी बिना समय की मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है। लेखक कहता है कि महादेव की मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा।
वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे: ‘ए रे ज़ख्म जोगे नहि जशे’- यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। बहुत सालों के बाद भी जब गांधीजी को प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, तो उस समय भी अचानक उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।
शुक्रतारे के समान NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1 – गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था?
उत्तर – महादेव भाई 1917 में गांधी के पास पहुँचे। गांधी जी ने उनको पहचानकर उन्हें उत्तराधिकारी का पद सौंपा था। 1919 में जलियाँबाग कांड के समय जब गांधी जी पंजाब जा रहे थे तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने उसी समय महादेव भाई। को अपना वारिस कहा था।
प्रश्न 2 – गांधी जी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे?
उत्तर – महादेव भाई पहले उनकी समस्याओं को सुनते थे। उनकी संक्षिप्त टिप्पणी तैयार करके गाँधी जी के सामने पेश । करते थे तथा उनसे लोगों की मुलाकात करवाते थे।
प्रश्न 3 – महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है?
उत्तर – महादेव भाई ने गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी के अलावा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद किया। इसके अलावा ‘चित्रांगदा’, ‘विदाई का अभिशाप’, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि का अनुवाद उनकी साहित्यिक देन है।
प्रश्न 4 – महादेव, भाई की अकाल मृत्यु को कारण क्या था?
उत्तर – महादेव भाई की अकाल मृत्यु को कारण उनकी व्यस्तता तथा विवशता थी। सुबह से शाम तक काम करना और गरमी की ऋतु में ग्यारह मील पैदल चलना ही उनकी मौत का कारण बने।
प्रश्न 5 – महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधी जी क्या कहते थे?
उत्तर – महादेव भाई के द्वारा लिखित नोट बहुत ही सुंदर और इतने शुद्ध होते थे कि उनमें कॉमी और मात्रा की भूल और छोटी गलती भी नहीं होती थी। गांधी जी दूसरों से कहते कि अपने नोट महादेव भाई के लिखे नोट से ज़रूर मिला लेना।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1 – पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
उत्तर – पंजाब में फ़ौजी शासन ने काफी आतंक मचाया। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार किया गया। उन्हें उम्र कैद की सज़ा देकर काला पानी भेज दिया गया। 1919 में जलियाँवाला बाग में सैकड़ों निर्दोष लोगों को गोलियों से भून दिया गया। ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा दी गई।
प्रश्न 2 – महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाडला बना दिया था?
उत्तर – महादेव भाई गांधी जी के लिए पुत्र के समान थे। वे गांधी का हर काम करने में रुचि लेते थे। गांधी जी के साथ देश भ्रमण तथा विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेते थे। वे गांधी जी की गतिविधियों पर टिप्पणी करते थे। महादेव जी की लिखावट बहुत सुंदर, स्पष्ट थी। वे इतना शुद्ध लिखते थे कि उसमें मात्रा और कॉमा की भी अशुधि नहीं होती थी। वे पत्रों का जवाब जितनी शिष्टता से देते थे, उतनी ही विनम्रता से लोगों से मिलते थे। वे विरोधियों के साथ भी उदार व्यवहार करते थे। उनके इन्हीं गुणों ने उन्हें सभी का लाडला बना दिया।
प्रश्न 3 – महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर – पूर्णत: शुद्ध और सुंदर लेख लिखने में महादेव भाई का भारत भर में कोई सानी नहीं था। वे तेज़ गति से लंबी लिखाई कर सकते थे। उनकी लिखावट में कोई भी गलती नहीं होती थी। लोग टाइप करके लाई ‘रचनाओं को महादेव की रचनाओं से मिलाकर देखते थे। उनके लिखे लेख, टिप्पणियाँ, पत्र और गाँधीजी के व्याख्यान सबके सब ज्यों-के-ज्यों प्रकाशित होते थे।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1 – ‘अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
उत्तर – आशय-महादेव भाई गांधी जी के निजी सचिव और निकटतम सहयोगी थे। इसके बाद भी उन्हें अभिमान छू तक न गया था। वे गांधी जी के प्रत्येक काम को करने के लिए तैयार रहते थे। वे गांधी जी की प्रत्येक गतिविधि, उनके भोजन और दैनिक कार्यों में सदैव साथ देते थे। वे स्वयं को गांधी का सलाहकार, उनका रसोइया, मसक से पानी ढोने वाला तथा बिना विरोध के गधे के समान काम करने वाला मानते थे।
प्रश्न 2 – इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफेद और सफ़द को स्याह करना होता था।
उत्तर – महादेव ने गाँधी जी के सान्निध्य में आने से पहले वकालत का काम किया था। इस काम में वकीलों को अपना केस जीतने के लिए सच को झूठ और झूठे को सच बताना पड़ता है। इसलिए कहा गया है कि इस पेशे में स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
प्रश्न 3 – देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
उत्तर – आशय- नक्षत्र मंडल में करोड़ों तारों के मध्य शुक्रतारा अपनी आभा-प्रभा से सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है, भले ही उसका चमक अल्पकाल के लिए हो। यही हाल महादेव भाई देसाई का था। उन्होंने अपने मिलनसार स्वभाव, मृदुभाषिता, अहंकार रहित विनम्र स्वभाव, शुद्ध एवं सुंदर लिखावट तथा लेखक की मनोहारी शैली से सभी का दिल जीत लिया था। अपनी असमय मृत्यु के कारण वे कार्य-व्यवहार से अपनी चमक बिखेर कर अस्त हो गए।
प्रश्न 4 – उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर – महादेव इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में पत्र लिखते थे कि देखने वालों के मुँह से वाह निकल जाती थी। गाँधी जी के पत्रों का लेखन महादेव करते थे। वे पत्र जब दिल्ली व शिमला में बैठे वाइसराय के पास जाते थे तो वे उनकी सुंदर लिखावट देखकर दंग रह जाते थे।
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